लेखनी प्रतियोगिता -20-Aug-2022..तेरा मेरा साथ...
बीस साल हो गए.... जिंदगी के खट्टे मीठे हर अनुभव का स्वाद ले चुकी हूँ....। इन बीस सालों में ना जाने कितने अपने मुझसे बिछड़ गए और ना जाने कितने अनजाने मेरे अपने बन गए...। ऐसा लगता हैं जैसे वक्त ने मुझे बहुत समझदार बना दिया हैं...।
क्या सोच रहीं हो खिड़की पर खड़ी खड़ी..!
अचानक मनीष की आवाज से तनवी का ध्यान टुटा....।
अरे कुछ नहीं बस... बाहर मौसम कितना सुहाना हैं ना आज...!
मनीष :- हां मौसम तो बहुत सुहाना हैं पर ये बैचेनी मौसम को लेकर तो नहीं हैं.... क्या बात हैं तनवी...!
मैं कुछ सोचूँ ओर ये ना समझे ऐसा भला कैसे हो सकता हैं...। इन बीस सालों में मेरी हर आह से भी ये वाकिफ हो चुके थे.... अब इनसे कुछ भी छिपाने का तो सवाल ही नहीं उठता था....।मन में ऐसा सोचते हुए तनवी खिड़की से मनीष के पास गई और बिस्तर पर मनीष के नजदीक बैठकर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली :- बीस साल हो गए मनीष.... बच्चे बड़े हो गए.... परिवार की जिम्मेदारी.... बच्चों की जिम्मेदारी.... घर की जिम्मेदारी...... ये सब निभाते निभाते..... ना जाने मेरे कितने अपने मुझसे छुट गए....। बस आज ऐसे ही उन छुटे हुवे रिश्तों को.... उन बीते हुवे बीस सालों को याद कर रहीं थीं....।
मनीष :- मैं जानता हूँ.... तुम्हारा बहुत कुछ खोया हैं इन बीस सालों में.... सबसे ज्यादा तुमने ही समझौता किया हैं.... हर परिस्थिति में... कभी मैं तेरा साथ दे पाया.... कभी परिवार के सदस्यों की वजह से नहीं भी दे पाया...। लेकिन फिर भी तुने अपनी हर जिम्मेदारी को बहुत अच्छे से संभाला हैं...। अगर मैं अपने ये बीस साल याद करू तो मैने बहुत कुछ पाया ही पाया हैं..... ओर वो सब तेरी वजह से था तनवी....। लेकिन मैं कई जगहों पर सेल्फिश हो गया था....।
तनवी :- ऐसी बात नहीं हैं मनीष....आपके साथ के बिना तो मेरा खुद का भी कोई वजूद नहीं हैं....।आपका गुस्सा करना.... चिल्लाना.... फिर प्यार से माफी मांगना....।
मनीष मुस्कुराते हुए :- ओ..... हेलो..... गुस्सा मैं नहीं... गुस्सा तुम मुझपे करतीं थीं.... मैं तो सिर्फ माफीया ही मांगता रहता था... वो भी बिना गलती के...।
तनवी उठते हुवे :- अच्छा जी.... इतनी जल्दी रंग बदल दिया आपने.... आपका सही हैं....।
सही..... आइ एम आलवेज़ राइट.... मैं हमेशा सही होता हूँ..... तुम ही कभी मुझे समझ नहीं पाई...।
तनवी थोड़ा नाराज़ होते हुए :- हां..... दुनिया भर की समझ तो आपमें हैं ना..... फिर भला मैं कैसे समझूंगी..... आपसे तो बात करना ही बेकार हैं....।
तनवी उठकर बोलते हुवे वापस खिड़की पर जाकर खड़ी हो गई और बाहर के मौसम को निहारने लगी....। लेकिन इस बार उसका मूड थोड़ा खराब हो चुका था....। वो मन ही मन बड़बड़ा रहीं थीं.... :- कितना भी कर लो.... कभी कदर नहीं मिलने वाली तुझे तनवी.... सब कुछ खो कर भी इनको खुश नहीं कर सकतीं....। सब कुछ तो कर चुकी हूँ... अब बाकी रहा क्या हैं... ।
तभी मनीष तनवी का हाथ पकड़ कर उसके हाथ में टिकिट्स रखकर बोला :- ये.... बाकी रहा हैं....।
तनवी आश्चर्य से :- ये क्या हैं....?
मनीष :- टिकिट्स..... फ्लाइट की टिकिट्स.....। याद हैं तनवी तुने हमारी पहली सालगिरह पर मुझसे कहा था की तुझे ज़िंदगी में एक बार फ्लाइट में बैठने की बहुत इच्छा हैं....। उस वक्त मेरी कमाई इतनी नही थीं.... उसके बाद जब भी सोचता कुछ ना कुछ प्रोब्लेम आती गई....। लेकिन इस बार नहीं.... ।
तनवी टिकिट्स को पलट पलट कर बस देखे जा रहीं थीं... उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वो अपनी खुशी कैसे जाहिर करें.... तभी उसका ध्यान टिकिट्स में दर्ज तारीख पर गया....।
तनवी :- मनीष..... ये.... ये..... डेट..... वो.... इस डेट को.... तो....
मनीष बीच में बोलता हुआ :- जानता हूँ..... रक्षाबंधन हैं....।
तनवी :- वहीं तो मनीष....इस दिन मैं कैसे कहीं जा सकतीं हूँ...। अरे दीदी आने वाली हैं.... भूल गए क्या आप...!
कुछ नहीं भूला हूं.... सब याद हैं.... दीदी हर साल आतीं हैं... इस साल भी आएगी.... लेकिन इन बीस सालों में तुम कभी नहीं गई अपने भाईयों के पास.... क्यूँ.... मैं जानता हूँ.... क्योंकि तुम्हें यहाँ का देखना हैं... यहाँ के फर्ज निभाने हैं....।तुम बहुत कर चुकी हो तनवी.... अब मेरी बारी....।
मनीष....मम्मी को.... पापा को... दीदी को.... इस बारे में पता हैं..!
नहीं.... किसी को नहीं पता.... ये सरप्राइज हैं... सबके लिए...।
मनीष.... हद करते हो तुम भी.... तुम अच्छे से जानते हो.... इस दिन मुझे परमिशन नही मिलेगी... फिर भी...
तनवी..... परमिशन का अगर सोचूँ और सच बोलूँ तो वो तो तुम्हें कभी नहीं मिलने वाली इस घर में....। मैं भी अच्छे से जानता हूँ सभी को.....। इतने सालों में क्या कभी किसी ने अपनी खुशी से रजामंदी से तुझे कहीं भी जानें दिया हैं..... बोलो.... अरे एक मूवी तक देखने के लिए हमें सबसे इजाजत लेनी पड़ती हैं ओर उस पर भी जल्दी आओ जल्दी आओ के फोन बजते रहते हैं...। बस करो यार... बहुत कर चुकी हो तुम...।
लेकिन मनीष..... तुम समझ नहीं रहे हो.... मैं ये सब सिर्फ घर में शांति बनाए रखने के लिए करतीं हूँ... इसके बारे में पता चला तो.... ना बाबा..... भूचाल आ जाएगा...। मुझमें हिम्मत नहीं हैं उस भूचाल का सामना करने की....।
तुम कुछ मत करो.... तुम सिर्फ पैकिंग करो.... मम्मी ,पापा, दीदी.... सब से मैं बात कर लूंगा..... प्यार से या नाराजगी से... जैसे भी वो इजाज़त दे.....।
लेकिन मनीष.....
मनीष तनवी के पास आया ओर उसे गले से लगाकर बोला... लेकिन वेकिन....अगर मगर..... सब मुझ पर छोड़ दो.... तुम बस प्लेन में बैठने के सपने को अब साकार होता हुआ देखो...।
तनवी मनीष की बांहों में समाकर कुछ पल के लिए सब कुछ भूल गई थीं....।
लेकिन हां.... मैं वहाँ भी तुझसे बहस करना बंद नहीं करुंगा.... उसकी तैयारी भी करके चलना...। (मनीष मुस्कुराते हुए बोला)
तनवी भी मुस्कुरा कर बोलीं :- उसके बिना तो मैं भी नहीं रह पाऊंगी...।
दोनों आगे आने वाले सपने साकार होने के बारे में सोचकर एक दूसरे की बांहों में ऐसे ही खोए रहें....।
Pankaj Pandey
22-Aug-2022 01:29 PM
Behtarin rachana
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Seema Priyadarshini sahay
22-Aug-2022 09:18 AM
बेहतरीन रचना
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Chetna swrnkar
21-Aug-2022 12:07 PM
Behtarin rachana 👌
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